मेरा गाँव
खो गए कहाँ खेत के मचान
चरर-मरर संगीत
नहीं गूंजते चैती-फाग
आल्हा-कजरी वाले गीत
महकता नहीं है महुआ का बाग
आम बीनने की टोलियाँ हुई गुम
सांसों में समा गई है 'महुआ'
गोलियों की तड-तड में खो गई हँसी
ऐसे सूखकर कांटा हो गई
पहाडी के पर्श्व की नदी
जैसे उस पर पड़ गई सरपंच की दृष्टि
नहीं जलते अलाव, न दादी माँ की कहानियाँ
जल जाते हैं अरमान, घुट जाती हैं सिसकियाँ
नहीं खुलते दरवाजे, खुलती बस खिड़कियाँ
परदा हटा पर आखों पर पड़ गया
संबंधों का रेशमी धागा
कितना सद गया
मेरे गाँव
तू प्रगति की कितनी सीढियाँ चढ़ गया।
तुम्हारे गाँव में कोई मुहब्बत का शज़र होगाहरीफों का शहर होगा, रकीबों का नगर होगा।
शरीफों की दुआओं का वहां पर क्या असर होगा।
ये बस्ती रहजनों की है,संभलकरके यहाँ चलना,
न कोई रास्ता होगा, न कोई हमसफ़र होगा।
चटख है धूप, तेजाबी फजायें किस तरह यारों,
शहर के तल्ख़ मौसम में गुलाबों का बसर होगा।
चला लू के थपेडों में वो शायद इसलिए आया,
तुम्हारे गाँव में कोई मुहब्बत का शज़र होगा।
नहीं है फिक्र काँटों की, न कोई दर्द छालों का,
वो कोई तीर्थ सा पावन,मेरे आशिक का घर होगा।
कोई सपनों का कायल है,कोई नज़रों से घायल है,
कोई मजनू किसी लैला की खातिर दरबदर होगा