मंगलवार

मारीच सुनहरे हैं बेदर्द ज़माने में,
हर चाल में खतरे हैं बेदर्द ज़माने में.
वो घर से निकलते तो मिलने के लिए मुझसे,
नश्तर बड़े गहरे हैं बेदर्द ज़माने में.
सूखे हुए दरिया हैं प्यासे से समंदर हैं,
बस रेत की लहरे हैं बेदर्द ज़माने में.
एक आधे अधूरे से सच पर भी बहकना क्या,
ये झूठे ककहरे हैं बेदर्द ज़माने में.
अंदाज़ फकीरी के हर बात कबीरी की,
पर कान के बहरे हैं बेदर्द ज़माने में.
मरना भी यहाँ मुश्किल जीना भी यहाँ मुश्किल,
हर साँस पे पहरे हैं बेदर्द ज़माने में.
ख्वाहिश है बुलंदी की हौसले उड़ानों के,
परवाज़ पे पहरे हैं बेदर्द बेदर्द ज़माने में.

2 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...

    जवाब देंहटाएं