अपने कैमरे के एक चित्र से प्रारम्भ करते हैं,
प्रकृति वैसे तो सभी को अच्छी लगती है,पर मुझे कुछ अधिक ही भाती है।
गुरुवार
बुधवार
निशीथ कवि
मैं
ऐसा हूँ-
नाम- उमेश्वर दत्त मिश्र"निशीथ"पिता- श्री राम सागर मिश्रमाता-स्मृति शेष श्रीमती रश्मि देवीजन्म-०२-०७-१९६३(दर्ज) , ०९-१०-१९६२(वास्तविक)स्थान- बाराबंकी, उत्तर प्रदेश, भारतशिक्षा- एम्.कॉम.,सी.ए.आई.आई.बी.,बैंकिंग उन्मुख हिन्दी प्रमाण पत्र,
सी.आई.सी, सी.डब्लू.डी.एल.सम्प्रति- बड़ोदा उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक में प्रबंधक.रुचियाँ- कविता, साहित्य, फोटोग्राफी , देशाटन, चित्रकलाविधाएं- प्रमुख रूप से हास्य-व्यंग्य एवं गीत, छंद,सम्बद्ध- संयोजक अभिव्यंजना(साहित्यक -सांस्कृतिक-सामाजिक संस्था)
- मंत्री, बड़ोदा उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक ऑफिसर्स कांग्रेस,कानपुर
नोट- इस ब्लॉग में प्रायः नई पोस्ट नीचे प्रदर्शित की जाती हैं
ऐसा हूँ-
नाम- उमेश्वर दत्त मिश्र"निशीथ"पिता- श्री राम सागर मिश्रमाता-स्मृति शेष श्रीमती रश्मि देवीजन्म-०२-०७-१९६३(दर्ज) , ०९-१०-१९६२(वास्तविक)स्थान- बाराबंकी, उत्तर प्रदेश, भारतशिक्षा- एम्.कॉम.,सी.ए.आई.आई.बी.,बैंकिंग उन्मुख हिन्दी प्रमाण पत्र,
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- मंत्री, बड़ोदा उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक ऑफिसर्स कांग्रेस,कानपुर
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जानौ बसंत तब आवा
जानौ बसंत तब आवा
कलियन मां अमृत फूटै,
जानौ बसंत तब आवा।
भंवरा अधरामृत लूटै,
जानौ बसंत तब आवा॥
जब मलय समीरन डोलै,
सौगन्धन भेद टटोले ।
कोयलिया कू-कू बोलै,
पासंग कबौं मन तोले॥
सब गांठ-गांठ खुलि छूटै
जानौ बसंत तब आवा ॥
छोरी सिंगार बनावै,
छोरा गलियन मंडरावे।
कोई खिलखिलाई बतियावै,
तौ कांटा अस धसि जावै
भीतर-भीतर कुछ टूटै,
जानौ बसंत तब आवा॥
कुछ गुदगुद-गुदगुद लागा,
जड़ चेतन रस मां पागा ।
सब लाज शरम लै भागा,
संयम का कच्चा धागा॥
खींचातानी मां टूटै,
जानौ बसंत तब आवा॥
उल्लास बढे दिन दूनौ,
सब नीको लाग जबूनो।
एकांत में पी का छूनो,
होई जाय अमावस पूनो॥
कुछ बोल न मुंह से फूटै,
जानौ बसंत तब आवा॥
जब बुढ़िया लागे बाला,
बुढऊ का मन मतवाला।
अंग-अंग से टपकै हाला,
परि जाय अकिल मां ताला॥
बस भीतर लड्डू फूटैं,
जानौ बसंत तब आवा॥
अनंग की भाषा बोल गयी
अनंग की भाषा बोल गयी
सोन मछरिया स्थिर जल में कर कल्लोल गयी।
जब नैनों से निज मन के वह पन्ने खोल गयी।।
सीटी मारे बांस पास पल पछुवा डोल गयी।
लाज के कारण लाल कली का घूँघट खोल गयी।
महुवा की मादकता मन में मिशरी घोल गयी ॥
कुहू-कुहू कविता कोयलिया रच कर चली गयी।
और चकोरी निठुर चाँद के हांथों छली गयी ।
नीयत पटु पलाश की पीली संरसो तोल गयी॥
कंचन-कनी-कामिनी कर में दरपन बाँच रही।
जैसे सपनों की देहरी पर संयम जाँच रही।
अंग-अंग पगले अनंग की भाषा बोल गयी॥
सोन मछरिया स्थिर जल में कर कल्लोल गयी।
जब नैनों से निज मन के वह पन्ने खोल गयी।।
सीटी मारे बांस पास पल पछुवा डोल गयी।
लाज के कारण लाल कली का घूँघट खोल गयी।
महुवा की मादकता मन में मिशरी घोल गयी ॥
कुहू-कुहू कविता कोयलिया रच कर चली गयी।
और चकोरी निठुर चाँद के हांथों छली गयी ।
नीयत पटु पलाश की पीली संरसो तोल गयी॥
कंचन-कनी-कामिनी कर में दरपन बाँच रही।
जैसे सपनों की देहरी पर संयम जाँच रही।
अंग-अंग पगले अनंग की भाषा बोल गयी॥
पति-मोबाइल
पति मोबाइल
दो महिलाएं
आपस में कर रहीं थी ठिठोली.
एक महिला दूसरे से बोली,
अगर आपको पति रिचार्ज कराना हो तो
कितने दिन के लिए कराएंगी?
मैंने सोचा ख्याल तो अच्छा है
काश! पति भी मोबाइल हो जाए तो
कितनी सारी मुश्किलें हल हो जाएँगी.
सिर्फ़ बच्चे को स्कूल भेजना हो तो
दस रूपये का चलेगा,
सिनेमा में बीस का
जुहू चौपाटी में पचास का नही खलेगा.
एक मोटे कवि को देख कर बोली-
सेट तो अच्छा है,
थोड़ा हेंडी होता तो कितना अच्छा होता.
सुनकर छरहरे कवि की बांछें खिल गयीं,
अगले की मानो लाटरी निकल गई.
मोहतरमा ने १ २ ३ मिलाया,
कंप्युटर से जवाब आया,
इस रूट के सभी पति व्यस्त हैं.
यानि सभी अपने-अपने में मस्त हैं.
अगली बार समस्या नयी है,
दो महिलाएं
आपस में कर रहीं थी ठिठोली.
एक महिला दूसरे से बोली,
अगर आपको पति रिचार्ज कराना हो तो
कितने दिन के लिए कराएंगी?
मैंने सोचा ख्याल तो अच्छा है
काश! पति भी मोबाइल हो जाए तो
कितनी सारी मुश्किलें हल हो जाएँगी.
सिर्फ़ बच्चे को स्कूल भेजना हो तो
दस रूपये का चलेगा,
सिनेमा में बीस का
जुहू चौपाटी में पचास का नही खलेगा.
एक मोटे कवि को देख कर बोली-
सेट तो अच्छा है,
थोड़ा हेंडी होता तो कितना अच्छा होता.
सुनकर छरहरे कवि की बांछें खिल गयीं,
अगले की मानो लाटरी निकल गई.
मोहतरमा ने १ २ ३ मिलाया,
कंप्युटर से जवाब आया,
इस रूट के सभी पति व्यस्त हैं.
यानि सभी अपने-अपने में मस्त हैं.
अगली बार समस्या नयी है,
डायल पति आस्थाई रूप से सेवा में नही है.
किसी तरह लाइन मिल गई,
मोहतरमा खिल गई.
कंप्युटर बोला
रिचार्ज की शर्तों को भली भांति बांच लें.
कृपया डायल किया पति जाँच लें.
होश तो तब उडे जब बोला,
किसी तरह लाइन मिल गई,
मोहतरमा खिल गई.
कंप्युटर बोला
रिचार्ज की शर्तों को भली भांति बांच लें.
कृपया डायल किया पति जाँच लें.
होश तो तब उडे जब बोला,
रिचार्जे वाउचर अपना मूल्य खो चुका है।
डायल किया गया पति पहले ही प्रयोग हो चुका है।
डायल किया गया पति पहले ही प्रयोग हो चुका है।
भाई साहब !
मुंगेरी लाल की तरह हसीं सपने मत देखिये.
अपने आवारा ख्यालों को गंदे नाले में फेकिये.
यहाँ पति-पत्नी के रिश्ते सात जन्मों तक चलते हैं.
यह भारतवर्ष है
यहाँ पश्चिम की तरह रोज-रोज सिम नहीं बदलते हैं.
***
मुंगेरी लाल की तरह हसीं सपने मत देखिये.
अपने आवारा ख्यालों को गंदे नाले में फेकिये.
यहाँ पति-पत्नी के रिश्ते सात जन्मों तक चलते हैं.
यह भारतवर्ष है
यहाँ पश्चिम की तरह रोज-रोज सिम नहीं बदलते हैं.
***
ममी
ममी
अंधकार में पिरामिडों के दबी थी परन्तु,
इतिहास युग-युग के प्रकाश डालती।
मिश्र की कला है पता चला है सुरक्षित
मृतक भी ये बात अचरज में है डालती॥
कहीं मृतकों की खैर कहीं जीवितों की नहीं,
बात भले छोटी हो हमें है बड़ा सालती ।
ख़ुद भले भूखे पेट मर गयी हो परन्तु ,
मर ये ममी कितनों का पेट पालती॥
***
ऐसा कोई मीत मिले तो
ऐसा कोई मीत मिले तो
अगर छाँव में धूप मिले, तो कहना मैंने याद किया है।
वही कोकिली कूक मिले, तो कहना मैंने याद किया है॥
शब्द-शब्द मूरत गढ़ करके,
जिसके गीतों को सुन करके।
दिल में नई तरंगें उठती ,
ऐसी कोई पंक्ति मिले ,तो कहना मैंने याद किया है ॥
देहरी तक आ करके ठिठकी ,
क्यों करके आती है हिचकी ।
जिसने मुझको याद किया हो
ऐसा कोई मीत मिले, तो कहना मैंने याद किया है ॥
चांदी में घोला हो सोना,
कुछ चंचल हो कुछ अलसौना ।
लज्जा कुंदन भी फीका हो
नैना जैसे सीप मिले, तो कहना मैंने याद किया है ॥
जैसे-जैसे घूँघट सरके ,
त्यों -त्यों कितने दर्पण दरके ।
जिसकी पलकें ही घूँघट हों
ऐसा कोई रूप मिले,तो कहना मैंने याद किया है ॥
बफे भोज
बफे भोज
डारी तरकारी, भीजि गई सबै सारी,लाल नारी भई जूतन किनारी जो दबै दई।
डैमफूल बोलि घूमी रोष से नवेली नार,
रायता की थारी ताके आनन छपै दई॥
बडो युद्ध जीति लाई आइसक्रीम भावज तो,
बरै सोऊ बारी नंदैया छीनि लै गयी।
बफे भोज कहें कि बफ़ेलो भोज कहें,यार
भैसिया का चारा मनो नांदन कुरै दई॥
***
सोमवार
मेरा गाँव
मेरा गाँव
खो गए कहाँ खेत के मचान
चरर-मरर संगीत
नहीं गूंजते चैती-फाग
आल्हा-कजरी वाले गीत
महकता नहीं है महुआ का बाग
आम बीनने की टोलियाँ हुई गुम
सांसों में समा गई है 'महुआ'
गोलियों की तड-तड में खो गई हँसी
ऐसे सूखकर कांटा हो गई
पहाडी के पर्श्व की नदी
जैसे उस पर पड़ गई सरपंच की दृष्टि
नहीं जलते अलाव, न दादी माँ की कहानियाँ
जल जाते हैं अरमान, घुट जाती हैं सिसकियाँ
नहीं खुलते दरवाजे, खुलती बस खिड़कियाँ
परदा हटा पर आखों पर पड़ गया
संबंधों का रेशमी धागा
कितना सद गया
मेरे गाँव
तू प्रगति की कितनी सीढियाँ चढ़ गया।
तुम्हारे गाँव में कोई मुहब्बत का शज़र होगा
हरीफों का शहर होगा, रकीबों का नगर होगा।
शरीफों की दुआओं का वहां पर क्या असर होगा।
ये बस्ती रहजनों की है,संभलकरके यहाँ चलना,
न कोई रास्ता होगा, न कोई हमसफ़र होगा।
चटख है धूप, तेजाबी फजायें किस तरह यारों,
शहर के तल्ख़ मौसम में गुलाबों का बसर होगा।
चला लू के थपेडों में वो शायद इसलिए आया,
तुम्हारे गाँव में कोई मुहब्बत का शज़र होगा।
नहीं है फिक्र काँटों की, न कोई दर्द छालों का,
वो कोई तीर्थ सा पावन,मेरे आशिक का घर होगा।
कोई सपनों का कायल है,कोई नज़रों से घायल है,
कोई मजनू किसी लैला की खातिर दरबदर होगा
रविवार
मुक्तक
मुक्तक
हालते बे-जुबाँ देखिये,
आप दर्दे जहाँ देखिये।
इससे पहले कोई भी दिखा दे,
ख़ुद ब ख़ुद आइना देखिये।
हालते बे-जुबाँ देखिये,
आप दर्दे जहाँ देखिये।
इससे पहले कोई भी दिखा दे,
ख़ुद ब ख़ुद आइना देखिये।
शनिवार
मुक्तक
मुक्तक
1
बात दिल की जुबाँ से भी तो कहें,
आप मेरी ख़ता तो कहें।
क़ुबूल है हर इक सजा लेकिन,
आप मुझसे खिचें-खिचें न रहें।
2
दृष्टी तो दृष्टी है फिर ठहर जाएगी,
गंध तो गंध है फ़िर बिखर जाएगी।
दिल लगा करके तो देखिये दोस्तों,
जिन्दगी आपकी भी संवर जाएगी।
३
अनजानों की भी बस्ती है,
दीवानों की भी मस्ती है।
दुनिया माने या न माने,
परवानों की भी हस्ती है।
1
बात दिल की जुबाँ से भी तो कहें,
आप मेरी ख़ता तो कहें।
क़ुबूल है हर इक सजा लेकिन,
आप मुझसे खिचें-खिचें न रहें।
2
दृष्टी तो दृष्टी है फिर ठहर जाएगी,
गंध तो गंध है फ़िर बिखर जाएगी।
दिल लगा करके तो देखिये दोस्तों,
जिन्दगी आपकी भी संवर जाएगी।
३
अनजानों की भी बस्ती है,
दीवानों की भी मस्ती है।
दुनिया माने या न माने,
परवानों की भी हस्ती है।
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