शनिवार

मुक्तक

मुक्तक
1
बात दिल की जुबाँ से भी तो कहें,
आप मेरी ख़ता तो कहें।
क़ुबूल है हर इक सजा लेकिन,
आप मुझसे खिचें-खिचें न रहें।
2
दृष्टी तो दृष्टी है फिर ठहर जाएगी,
गंध तो गंध है फ़िर बिखर जाएगी
दिल लगा करके तो देखिये दोस्तों,
जिन्दगी आपकी भी संवर जाएगी।

अनजानों की भी बस्ती है,
दीवानों की भी मस्ती है
दुनिया माने या माने,
परवानों की भी हस्ती है




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें