बुधवार

सावन तो दिन चार का, भावन तन पर्यन्त. 
सत्, चित, भावन संग हों, हरि भाषें जन संत.
जनता तो चारा महज, जो चाहे चर जाय.
जिसको चारा ना मिले बेचारा घर जाय. - निशीथ