NISHEETH KAVI
बुधवार
सावन तो दिन चार का, भावन तन पर्यन्त.
सत्, चित, भावन संग हों, हरि भाषें जन संत.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें