बुधवार

जानौ बसंत तब आवा


जानौ बसंत तब आवा
कलियन मां अमृत फूटै,
जानौ बसंत तब आवा।
भंवरा अधरामृत लूटै,

जानौ बसंत तब आवा


जब मलय समीरन डोलै,

सौगन्धन भेद टटोले
कोयलिया कू-कू बोलै,

पासंग कबौं मन तोले॥
सब गांठ-गांठ खुलि छूटै
जानौ बसंत तब आवा

छोरी सिंगार बनावै,
छोरा गलियन मंडरावे।
कोई खिलखिलाई बतियावै,
तौ कांटा अस धसि जावै

भीतर-भीतर कुछ टूटै,
जानौ बसंत तब आवा॥


कुछ गुदगुद-गुदगुद लागा,

जड़ चेतन रस मां पागा
सब लाज शरम लै भागा,
संयम का कच्चा धागा॥
खींचातानी मां टूटै,
जानौ बसंत तब आवा॥


उल्लास बढे दिन दूनौ,
सब नीको लाग जबूनो।
एकांत में पी का छूनो,
होई जाय अमावस पूनो॥
कुछ बोल मुंह से फूटै,
जानौ बसंत तब आवा॥



जब बुढ़िया लागे बाला,
बुढ का मन मतवाला।
अंग-अंग से टपकै हाला,
परि जाय अकिल मां ताला

बस भीतर लड्डू फूटैं,
जानौ बसंत तब आवा




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